बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र
अध्याय - 2
वेदान्त दर्शन
(Vedant Darshan)
प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. वेदान्त दर्शन क्या है?
अथवा
वेदान्त दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
2. वेदान्त दर्शन के सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर -
वेदान्त दर्शन
(Vedant Darshan)
वेदान्त (Vedant) - वेदान्त शब्द का तात्पर्य है वेद का अन्त। इन्हें वेदों का अन्तिम भाग अथवा वेदों का सार भी कहा जाता है। वेद के मुख्यत: तीन भाग हैं- (i) वैदिक मन्त्र, (ii) ब्राह्मण, (iii) उपनिषद्। उपनिषद् वेद का अन्तिम भाग तथा वैदिक काल का अन्तिम साहित्य है।
वेदान्त के तीन रूप बताए गए हैं-
(i) द्वैत,
(ii) विशिष्टाद्वैत,
(iii) अद्वैत।
अधिकांश दार्शनिक अद्वैत समर्थक हैं और द्वैत, विशिष्टाद्वैत और अद्वैत में कोई अन्तर नहीं मानते। उनके अनुसार ये तीनों रूप वेदान्त दर्शन के तीन चरण हैं और अन्तिम लक्ष्य अद्वैत की अनुभूति है।
इस प्रकार जो ज्ञान वास्तविकता की ओर ले जाता है, वही वेदान्तं है।
वेदान्त दर्शन का प्रारम्भ परम निराशावाद से होता है तथा इसका अन्त होता है यथार्थ आशावाद में। वेदान्त यह शिक्षा देता है कि निर्वाण लाभ यहीं और अभी हो सकती है, उसके लिए मृत्यु की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं। निर्वाण शब्द का तात्पर्य है आत्म-साक्षात्कार कर लेना।
वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त
(Principles of Vedant Darshan)
वेदान्त दर्शन के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. ब्रह्म की अवधारणा (Conception of Brahma ) - शंकराचार्य ने ब्रह्म की सत्ता को ही वास्तविक सत्ता माना है। शंकराचार्य ने कहा है - " ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवों ब्रह्मैव नापरः। " अर्थात् ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, जगत मिथ्या है तथा जीव ब्रह्म ही है, अन्य कोई नहीं। ब्रह्म ही मूल तत्व है और ब्रह्म के द्वारा ही इस ब्रह्माण्ड की संरचना होती है। ब्रह्म इस संसार का निर्माण अपनी माया शक्ति द्वारा करता है। शंकराचार्य ने सत्ता की तीन कोटियाँ बतायी हैं-
(i) परमार्थिक सत्ता,
(ii) व्यावहारिक सत्ता तथा प्रतिभाषिक सत्ता।
परमार्थिक दृष्टि से ब्रह्म निर्गुण पूर्णतः सत्य है तथा सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापी है। ब्रह्म अनेक जीवों के रूप में प्रकट होता है। ब्रह्म का अस्तित्व देश, काल से परे है। ब्रह्म स्वतः सिद्ध है इसलिए उसे सिद्ध करने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
2. जगत् की अवधारण (Conception of World) - शंकराचार्य के अनुसार जगत् मिथ्या है क्योंकि जगत् परिवर्तनशील है, इसका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। जगत् स्वप्नवत् काल्पनिक, मायिक एवं असत्य है किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से जगत् सत्य है, क्योंकि इसी जगत् में रहकर मनुष्य ज्ञान, कर्म भक्ति और मोक्ष की प्राप्ति करता है।
शंकराचार्य ने जगत को समझने के लिए तीन सत्ताओं का उल्लेख किया है जोकि निम्नलिखित हैं-
(i) परमार्थिक सत्ता यह वास्तविक सत्ता है जिसे न तो बाधित किया जा सकता है और न ही इसके बाधित होने की कल्पना की जा सकती है।
(ii) व्यावहारिक सत्ता जाग्रत अवस्था में व्यावहारिक सत्ता सत्य प्रतीत होती है। इस सत्ता को तार्किक रूप से खण्डित किया जा सकता है। इसलिए इस सत्ता को पूर्ण रूप से सत्य नहीं माना जाता है।
(iii) प्रतिभाषिक सत्ता - यह सत्ता स्वप्न अथवा भ्रम की दशा में अनुभव होती है इसका खण्डन जाग्रत अवस्था के अनुभव से हो जाता है।
3. माया की अवधारण (Conception of Maya) - शंकराचार्य के अनुसार आदिकाल से ही परमतत्व अर्थात् परमात्मा की शक्ति विद्यमान है। इसे माया की संज्ञा दी गयी है जोकि न तो सत्य है और न असत्य है। इसका वर्णन सम्भव नहीं है। परमात्मा माया की सहायता से जगत् का निर्माण करता है। जगत में जो विविधता दिखाई देती है वह सत्य नहीं है। सत्य तो केवल परमतत्व है जो जगत् की समस्त वस्तुओं में उपस्थित है। ब्रह्म ही जगत् की रचना के उपादान का कारण है। वे सभी प्राणी जो माया द्वारा उत्पन्न होते हैं, 'जीव' कहलाते हैं। माया के जाल में फंसकर प्राणी यह भूल जाता है कि ईश्वर उसका सृजनकर्ता है जिसके कारण वह स्वयं को एक स्वतन्त्र सत्ता मान लेता है और अपने शरीर, मन तथा इन्द्रियों में सिमट जाता है। इसी अज्ञानता के कारण जीव स्वयं को कर्त्ता/कारक मान लेता है और 'संकाम कर्म' करते हुए 'पाप' तथा 'पुण्य' का भागी बनता रहता है। इसी कारण उसे जन्म और मृत्यु के बन्धन में रहना पड़ता है। जब प्राणी को यह ज्ञान हो जाता है कि उसका सम्बन्ध परमात्मा से भी है तब उसकी अज्ञानता धीरे-धीरे छँटने लगती है। वह निष्काम कर्म की प्रवृत्ति की ओर अग्रसर होता है और परमात्मा में लीन हो जाता है।
4. जीव की अवधारण (Conception of Jeeva) - शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन के अनुसार प्राणी माया की रचना है। अज्ञानता के कारण प्राणी स्वयं को अपने शरीर का स्वामी समझ लेता है और इन्द्रियों द्वारा शरीर जो भी कर्म करता है उसे यह मान लिया जाता है कि अमुक कार्य जीव ने किया है। प्राणी अपनी ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से बाह्य जगत का ज्ञान अर्जित कर सकता है। जीव और आत्मा में व्यावहारिक अन्तर होता है। आत्मा परमार्थिक सत्ता है जबकि जीव व्यावहारिक सत्ता। जब आत्मा शरीर, इन्द्रिय, मन इत्यादि उपाधियों से सीमित होती है तब वह जीव होता है। आत्मा एक है, जबकि जीव भिन्न-भिन्न शरीरों में अलग-अलग हैं। इस प्रकार जीव आत्मा का आभास मात्र है। शंकराचार्य का मत है कि आत्मा मुक्त है परन्तु जीव इसके विपरीत बन्धनग्रस्त है। अपने प्रयासों से जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता है। शरीर के नष्ट हो जाने के बाद जीव आत्मा में लीन हो जाता है।
5. आत्मा की अवधारण (Conception of Atman) अद्वैत वेदान्त के अनुसार आत्मतत्व ही परमतत्व है। शंकराचार्य का मत है कि 'आत्मा' और 'परमात्मा' एक ही तत्व के दो नाम हैं। आत्मा अजर व अमर है। माया के कारण आत्मा जीवात्मा के रूप में जीवों का रूप ले लेती है। आत्मा परिवर्तनशील है क्योंकि यह स्थान और समय से बंधी हुई नहीं है। वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्मा, ब्रह्म दोनों समान सत्य हैं।
6. मोक्ष की अवधारण (Conception of Moksha) - भारतीय दर्शन में मोक्ष को ही जीव का अन्तिम लक्ष्य बताया गया है। शंकराचार्य के अनुसार, जंब आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप ब्रह्म में लीन होने के लिए बन्धनों से मुक्त हो जाती है तब मोक्ष प्राप्त हो जाता है अर्थात् जीव को आत्मज्ञान या ब्रह्मज्ञान हो जाता है। शंकराचार्य ने ज्ञानयोग को कर्मयोग से बड़ा माना है। मोक्ष प्राप्ति के लिए निष्काम कर्म की आवश्यकता होती है। सकाम कर्म से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। कर्मफल के कारण जीव जीवन-मरण के बंधन में बँधा रहता है और जब तक इस बन्धन में जीव रहता है उसे आत्मज्ञान नहीं हो पाता। निष्काम कर्म वही योगी कर सकता है जिसे आत्मज्ञान का बोध हो जाता है।
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- प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
- प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
- प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
- प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
- प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
- प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
- प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
- प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
- प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
- प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
- प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।